मृत्यूचे भय कसले..आज नाही तर उद्या,तो आपलाच आहे..
मुलाकात हुई एक दोस्त से कल..
बातों बातों मे कुछ यू पूछा उसने,
क्यूँ कहते,लिखते हो इतना सच ?
क्या किमत मिलती हैं तुम्हे इसकी ?
हसकर में ने कहां..
हर चीज बेचने थोडी ही निकली हूँ,
कुछ कर्जदार भी तो बना लू..
फिर उसने गुस्से से कहां,
क्या डर नहीं लगता तुम्हे,
छीन लेगा तुमसे तुम्हारी साँसे कोई ?
मुस्कुराके हमने भी शान से जवाब दे ही दिया..
सच कहने,लिखने मे क्या डर ?
वो तो झूट के घर करता है गुजारा..
मौत से भी कैसी छीपाई,
वो भी अपना ही है भाई..
कल मरना ही है सभीको,
तो आज ही सही...
मर के करोगे क्या हासील ?
अपनी जिंदगी कैसे जिओगे ?
फिकर नहीं तुम्हे अपनो की ?
एक आँख मे आंसू और दुसरे मे,
गुस्सा था यार के..
अच्छाई की लत है लगी,
यहाँ तो मंजिल है मिली..
अपनों ने ही तो दिया है ये हौसला,
वरना इन आँखो मे ये नमी ना होती...
आखिर गले लगाही लिया उसने
ना हस रहा था,ना रो रहा था..
फिर कहने लगा,
इसी बात का तो नाज है हमे,
के तुम अपने हो..
ऐ दोस्त,हर जन्म मे अपनी हो यारी,
अब हर बात मे है अपनी साझेदारी..
सर्व सत्यशोधक,विचारवंत,समाजसुधारक,महामानव,
वीर,वीरांगना,सत्य कृतिशील वैचारिक वारस,शेतकरी कष्टकरी भगिनी बांधव यांना समर्पित !
प्राची दुधाने
वारसा फाऊंडेशन
बहुत अच्छा लेखन
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