प्रतिनिधित्व के जनक राजर्षि छत्रपती शाहूजी महाराज


 प्रतिनिधित्व के जनक राजर्षि छत्रपती शाहूजी महाराज

   आनेवाले इस २६ जून के दिन राजर्षि छत्रपती शाहूजी महाराज की १४८ वी जयंती हम सब मना रहें है। वैसे जयंती,पुण्यतिथी तो हम हमारे अनेक समाज सुधारकोकी मनाते आए हैं l परंतु प्रश्न यह है क्या हम उनके विचार,कार्य को समझकर उसपर अंमल कर पाए है । अगर हाँ,तो हम  परिवर्तन जरूर निर्माण कर रहें है l और अगर नहीं तो अभी यह समय है अपने इन विरोंके कृतिशील विचार समझे और उनकी दिखाई राह पर चल पडे l

   राजर्षि छत्रपती शाहूजी महाराज एक ऐसे अद्वतीय व्यक्तीमत्व हैं,जो अपने जीवन में किये परिवर्तन से हमेशा हमारे दिल और दिमाग पर राज करेते रहेंगे l छत्रपती शिवाजी महाराज के वंशज शाहूजी महाराज पूर्ण रूप से खरे उतरे हैं l स्वराज्य,याने लोगा का अपना राज्य कहलाता है l उसमें सभी का समावेश बिना किसी भेद के हुआ है l इस सोच को आगे ले जाते हुए राजर्षि छ.शाहूजी महाराज ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया था l १९०२ का वह समय था l जब देश स्वतंत्रता संग्राम के बीच खड़ा लढ रहा था और दूसरी ओर सदियोंसे चली आ रही अपनी ही समाज व्यवस्था से भी झूलज रहा था परंतु महाराष्ट्र,जो हमेशा पुरोगामी,  जिसे हम उदार विचार कह सकते है रखनेवाला और इन्हीं विचारोपर कृति के माध्यम से आगे बढनेवाला राज्य कहलाता है l ठिक इसी तरह राजर्षि छ.शाहूजी महाराज अपने उदार पुरोगामी विचारों से गरिब,पिछड़े लोगो के प्रति आरक्षण के माध्यम से अब तक उनके लिये बंद द्वार खुले कर रहे थे l इतिहास में यह पहली बार हो रहा था की आधिकारीक शासनादेश के रूप में शुद्र,शुद्रातीशुद्रो सहित सभी ब्राह्मणेतर समाज के लिए ५० फिसदी आरक्षण का ऐलान किया गया था। यह दिन था २६ जुलाई १९०२ l यह दिन आरक्षण दिवस भी कहाँ जाता है।

   ऐसा नहीं है की पहली बार ये सोच हमारे किसी विचारवंत समाज सुधारकने कृति में उतारी हो l इससे पहले स्त्री शिक्षण के जनक महात्मा ज्योतिबा फुले के द्वारे भी इसपर कार्य किया गया था l शिक्षा के माध्यम से सभी गैर ब्राह्मनों को शिक्षा के द्वार खुले कर महात्मा फुलेजीने प्रतिनिधीत्व के महत्वपूर्ण पढाव हा निर्माण किया था l बड़ौदा,मैसूर जैसी रियारतों में आरक्षण पहले भी था l परंतु छ.शाहूजी महाराजने उसे व्यापक स्वरूप दे कर शासनमान्य करवा लिया और उन्हीं के मार्ग पर और आगे चल पडे l

   यहाँ हमें एक बात स्पष्ट रूप से समझनी चाहिए वह यह की आरक्षण का सही अर्थ कया है ?  जिसे हम आरक्षण या Reservation कहते हैं वह असल में प्रतिनिधित्व का अधिकार है l एक ऐसा अवसर जो समाज की हर एक ऐसी व्यवस्था जो भेदभाव से किसी एक को काबील बनाती है तो दूसरी तरफ बहुसंख्य को पिछडा बनाने में रुची रखती है l इन सब पिछडे,वंचित समुह को समाज व्यवस्था मे समान अधिकार,स्वतंत्र्य,न्याय जैसे मूल्य समझकर अपनाने के लिए शिक्षा,सरकारी नौकरी जैसे स्थानों में सहभाग लेना आवश्यक है l पर ऐसे तो पिछड़ी हुई व्यवस्था इन सब से वंचित को अवसर थोडी ही ना देती l इसी लिये छ.शाहूजी महाराज द्वारा इसे आधिकारीक शासनादेश के तहत समाज में कार्यान्वयीत करना महत्वपूर्ण निर्णय स्वरूप देखा गया हैं  l राजर्षि छ.शाहूजी महाराज को हम इसी लिये आरक्षण या प्रतिनिधित्वं के जनक केहते है l  शाहूजी महाराज के इस आदेश के कारण वर्णवादी समाज व्यवस्था से जो शोषित बहुजन समाज था उसे प्रतिनिधीत्व के स्वरूप में भागीदारी,  जो उनका हक था मिलने लगी l गौर करनेवाली बात यह थी की भारत में जो बहुसंख्य और यहाँ के मूलनिवासी थे उन्हें ही अपने मूलभूत अधिकारों से मुठ्ठीभर समाज व्यवस्था के ठेकेदाराने वंचित रखा हुआ था l अपने इस क्रांतिकारी निर्णय से सामाजिक न्याय प्रस्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य का श्रेय भी राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज को जाता हैं l   

    छ.शाहूजी महाराजने जिस प्रकार शिक्षा का मेहत्व बहुजनोमे रोपन करने हेतु से उसे सख्त करने का आदेश दिया था l जो इस आदेश को ना मानकर अपने पाल्यको शिक्षा से वंचित रखेगा उसे दंड स्वरूप १ रुपिया देना होगा l यह निर्णय उनके द्वारा लिया गया था l जिस वजह से शिक्षा लेके बहुजन साक्षर बने और अपने अधिकारों प्रति जागृत हुए l ऐसे ही शासनादेश के माध्यम से प्रतिनिधित्व जब शोषित बहुजनो को प्राप्त हुआ तब वर्ण,जाती,वंश,लिंग ऐसे सभी भेदो से आगे जाकर मानवता प्रस्थापित होने लगी |

  इसी पर विचार करते हुए आगे १९०८ में भारत में ब्रिटिशों ने जातियों को आरक्षण उपलब्ध कराने का निर्णय लिया l आगे बाबा साहेब आंबेडकरजी ने संविधान में आरक्षण तथा प्रतिनिधीत्व,जो अनेक वंचित समूहों को लागू हो इसका प्रावधान भी किया l

  यहा भी गौर करनेवाली बात यह है की भारत में महाराष्ट्रा की इस परिवर्तनवादी भूमी में जो शिव – फूले – शाहू – आंबेडकर के विचारधारा की कृतिपर चल रही है आज भी यहाँ से आरक्षण / प्रतिनिधित्व की लढाई जारी है l समय से हमें इनमें कुछ बदलाव लाना जरूरी है l परंतु अभी भी १२२ साल बाद भी हमें आरक्षण तथा प्रतिनिधित्व की कितनी आवश्यकता है इसका एहसास होता है l परंतु इतके सालों में हमारे इन क्रांतिकारोने हमारे किए जो भी कार्य किए उनपे अमल करना हम क्यो भूल जाते है आज भी हम सिर्फ राजश्री छत्रपति शाहूजी महाराज ने खुले किये इस मार्ग को समझ नहीं पाए है l प्रतिनिधित्व के अवसर से जो आज समाज की व्यवस्था में अपना एक अन्य स्थान बना चुके है,  क्या वह अपने पिछे छूट रहें समाज के अन्य समूह के भाई बहनों को भूल चुके हैं ? क्या इसी के कारण अमिर और अमिर,गरिब अधिक गरिब हो रहें है l क्या यही कारण है की मुठ्ठीभर पुँजीपतियों के साथ मिलकर राजनेता सियासती खेल के लिए निजीकरण का रास्ता अपना रही है l और शिक्षा,सरकारी नौकरीया उनके हाथों सौंप रही है l        जिन सब बहुजनके लिए मिलकर छत्रपति शाहूजी महाराज और अन्य सुधारक लढ़े थे,क्या हम आपस में लढ़कर ही समाज के ठेकेदारोकों फिर से अपने उपर शासन और शोषन करने की अनुभूती देंगे l आज देश में जो द्रिश्य है वह तो यहीं दिखाता है l

  भारत के बहुसंख्य मूलसमाज को शोषन से,गुलाम‌गिरी से मुक्त करने का प्रतिनिधित्व शायद यह सबसे महत्वपूर्ण निर्णय था l इसी लिए हमें लढ़‌वाकर,दूसरी तरफ शिक्षा व्यवस्था खोकली कर निजीकरण से नौकरीयाँ खत्म करने के बाद हमें फिर से गुलाम बनाने की कोशिश जारी है l अगर यह रोकना है तो हमें एक होना होगा l छत्रपती शाहूजी महाराज की नितीयों को सुझबूझ के साथ कृति में ढालना होगा l उन्हें आदर्श मानकर मस्तक पर उठाकर नाचने के बजे उन्हें मस्तिष्क में उतारना होगा l समय के साथ कुछ – विचारों परिवर्ततित भी करना होगा l प्रतिनिधित्व की लढाई में कोई पीछे ना छूट जाए इसके लिए कदम से कदम मिलकर चलना होगा l यह आसान नहीं,परंतु हमारे महानायक एवमं महानायिका हमारी प्रेरना तथा मार्गदर्शक बनकर हमेशा हमें मानव,समाजहित की राह दिखाते रहें है और दिखाते रहेंगा l

राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज के इस महत्वपूर्ण प्रयास को हमें हमेशा याद रखना होगा l यही सोच हमें सकारात्मक बनाये रखेगी l जिस तरह शाहूजी महाराज हर एक व्यक्ती के प्रतिनिधित्व के लिए सोचकर उनकी हर रूप से सहायता करते l हमें भी यह कोशिश अपने अपने स्थर पर करनी चाहिए l मराठाओं के साथ अन्य पिछडे जाती के बहुजनों के लिए प्रातिनिधिक स्वरूप में जो प्रयास शाहूजी महाराज ने किये उन्हें दोहराने की आज आवश्यकता है l यह हम सभी को बुद्धीभेद किए बगैर सोचना होगा और उसे कृति में ढालना है l

  राजर्षि शाहूजी महाराज के इतिहास में कई विचार और कृति का उल्लेख हमें मिलता है l जो बहुजन समाज को परिवर्तन की ओर ले आया है l इन विचारों को आत्मसात किजिए और आगे बढ़िये l यहीं कृति हमें उनके कृतिशील विचारों का वारीस बनाती है l

 आखिर में यहीं कहूँगी के जिनकी कल की कोशिशों से हमारा आज खुशहाल है l वहीं कोशिश आज हम करें,ताकि हमारा अनेवाल कल आबाद रहें l हमारे परिवर्तकारी महानायक महानायिकाओं के दिखाये परिवर्तन के मार्ग पर  चालते रहें l

 ऐसे ही जिनके सिद्धांतो पर चलने की कोशिश हम कर रहे है l कोल्हापूर नरेश,प्रतिनिधित्व के जनक, लोककल्याणकारी राजा राजर्षी छत्रपती शाहूजी महाराज के चरणों में शतः शतः प्रणाम l 🙏

 जय भारत

प्राची दुधाने 



 

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